Not known Factual Statements About कोकिला-व्रत-कथा

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे। साथ ही इस दिन अपने दिन की शुरुआत सूर्य को अर्घ देने के साथ करें।

इसके पश्चात धूप और घी का दीपक जलाकर शिव जी आरती करें और फिर कोकिला व्रत कथा का पाठ करें।

अविवाहित महिलाओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है।

यह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था और अरब के पास यवन देश में रहता था। पुराणों में इसे म्लेच्छों का प्रमुख कहा गया है।

ஶ்ரீ here லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)

कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।

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मंदिर जाकर भगवान शिव का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें।

पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।

वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ पर जाकर पाती हैं, कि उनके पिता ने उन्हें पूर्ण रुप से तिरस्कृत किया है। दक्ष केवल सती का ही नही अपितु भगवान शिव का भी अनादर करते हैं उन्हें अपशब्द कहते हैं। सती अपने पति के इस अपमान को सह नही पाती हैं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। सती अपनी देह का त्याग कर देती हैं।

इस व्रत को निष्ठा और श्रद्धा के साथ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।

यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

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